मुंबई (कमोडिटीज कंट्रोल) फसल नुकसान से उड़द की कीमतों में आ चुकी करीब 100% की तेजी के बावजूद दलहन इंपोर्ट के नए कोटे को लेकर सरकार किसी भी तरह की जल्दबाजी में नहीं है। हमें सूत्रों से जानकारी मिली है कि जनवरी के मध्य तक सरकार किसी भी तरह के दलहन इंपोर्ट का कोटा जारी नहीं करेगी।
सूत्रों के मुताबिक फिलहाल सरकार का पूरा फोकस किसानों को उनकी उपज का वाजिब दाम दिलाने पर है और ये तभी संभव है जब घरेलू बाजार में दाम बढ़े। बारिश और बाढ़ की वजह से मध्य प्रदेश में उड़द की फसल को भारी नुकसान पहुंचा है। साथ ही जो फसल किसी तरह से बच गई है, उसकी क्वालिटी खराब हो गई है। ऐसे में 10-15 दिन पहले तक किसानों को MSP से करीब 35% नीचे के भाव पर उड़द बेचनी पड़ रही थी। लेकिन पिछले महज 10 दिनों में ये अंतर काफी कम हो गया है। देश के सबसे बड़ा उड़द उत्पादक राज्य मध्य प्रदेश के बीना और अशोकनगर में देसी उड़द का भाव 3800-4800 रुपए से बढ़कर 4500-6500 रुपए/क्विंटल के स्तर पर चला गया है। जबकि उड़द का न्यूनतम समर्थन मूल्य 5700 रुपए/क्विंटल है। वहीं चेन्नई में आयातित SQ उड़द का भाव 8950 रुपए और मुंबई में FAQ उड़द का भाव 7900 रुपए/ क्विंटल है।
कृषि मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि, "हाल फिलहाल में इंपोर्ट कोटा लाकर सरकार दाल के बाजार में किसी तरह का निगेटिव माहौल नहीं बनाना चाहती है। वैेसे भी अभी तुअर का भाव MSP के नीचे ही चल रहा है"।
जानकारों का मानना है कि देश की कुल दलहन में उड़द की हिस्सेदारी महज 7-8% है। ऐसें में उड़द की मंहगाई कोई बड़ी चिंता की बात नहीं है। JLV एग्रो के डायरेक्टर विवेक अग्रवाल के मुताबिक, "देश में सबसे अधिक खपत वाली दलहन तुअर और चने का भरपूर भंडार है। खेती वाले इलाकों में अच्छी बारिश से मसूर और चने की बुआई भी अच्छी होने की उम्मीद है"। कृषि मंत्रालय के मुताबिक 8 नवंबर तक 19.82 लाख हेक्टेयर में चने की बुआई हो चुकी है। सरकार ने इस साल 116 लाख टन चना उत्पादन का लक्ष्य रखा है। विवेक का मानना है कि, "सरकार को इंपोर्ट पर फैसले के लिए तुअर की फसल और रबी दलहन की बुआई के आंकड़े अहम होंगे"।
गौरतलब है कि दाल मिलों ने 31 अक्टूबर को खत्म हो चुके उड़द इंपोर्ट कोटे की मियाद और मात्रा दोनो को बढ़ने के लिए सरकार से गुहार लगाई थी, लेकिन सरकार पहले ही इस मांग को खारिज करते हुए सिर्फ तुअर (अरहर) इंपोर्ट के कोटे की मियाद 15 नवंबर तक बढ़ाई है। उड़द में आई तेजी का असर चना और तुअर जैसी दूसरी दालों पर भी पड़ा है।