मुंबई (कमोडिटीज कंट्रोल) वायदा में हो रही जोरदार सट्टेबाजी से सरसों की कीमतें महज 3 महीने में करीब 30% तक उछल चुकी हैं। जबकि हाजिर बाजारों में सरसों का फंडामेंटल इस ट्रेंड को सपोर्ट नहीं कर रहा है। ऐसे में बाजार के जानकार इसकी कीमतों में जल्द ही भारी गिरावट की आशंका जता रहे हैं।
इस साल अप्रैल से वायदा में सरसों का भाव करीब 4000 रुपए से बढ़कर आज 5245 रुपए की ऊपरी स्तर छू चुका है। इस दौरान इसमें 31% से ज्यादा की तेजी आ चुकी है। हालांकि हाजिर में इसका भाव 5200 रुपए का स्तर छूने के बाद अब नीचे आ रहा है। कारोबारियों का दावा है कि हाजिर में इस भाव पर सरसों की डिमांड बेहद कम है। वायदा के दम पर ही हाजिर में भी तेजी गई है। जयपुर के एक प्रमुख ब्रोकर का कहना है कि सरसों में आई तेजी की वजह से इसके तेल का दाम 110 रुपए के पार जा चुका है। जो रिटेल में करीब 130 रुपए लीटर के स्तर पर बिक रहा है। जबकि सोयाबीन तेल का दाम इससे काफी सस्ता है। ऐसे में सरसों के साथ इसके तेल की मांग में भी कमी आई है।
सूत्रों का कहना है कि दरअसल बाजार में तेजड़िए सक्रिय हैं, जो कम सप्लाई का माहौल दिखाकर बाजार को बढ़ा रहे हैं। जबकि सरसों तेल उत्पादक संघ के मुताबिक कोरोना काल में सरसों की मांग में कमी आई है। इस साल अप्रैल के दौरान करीब 6.5 लाख टन सरसों की पेराई हो सकी है। जो पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले करीब 28% कम है। हालांकि मई में पेराई करीब 7% बढ़कर करीब 8 लाख टन की रही। कारोबारी सूत्रों के मुताबिक जून तिमाही में करीब 21 लाख टन सरसों की पेराई का अनुमान है। जो पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले करीब 9% कम है।
दरअसल इस साल सरसों के उत्पादन में करीब 5% कमी की आशंका है। कारोबारी अनुमान के मुताबिक इस साल करीब 76 लाख टन सरसों का उत्पादन हुआ है। जबकि पिछले साल 81 लाख टन का उत्पादन हुआ था। अपने तीसरे अनुमान में केंद्र सरकार ने भी देश में सरसों की पैदावार 92 लाख टन से घटकर 87 लाख टन रहने की अनुमान दिया है। लेकिन उत्पादन में इस कमी के बावजूद खपत के मुकाबले सरसों की उपलब्धता ज्यादा है। देश में सालाना करीब 72-74 लाख टन सरसों की खपत है। जबकि इस साल 5 लाख टन के ओपनिंग स्टॉक के साथ देश में 81 लाख टन सरसों की सप्लाई रहने की उम्मीद है।
कारोबारियों का कहना है सरसों में इम्यूनिटी बूस्टर गुण होने की वजह से कोरोना काल में पिछले 1-2 महीनों से इसके तेल की मांग कुछ बढ़ी है। लेकिन अभी भी खपत औसत से कम है। इस लिहाज से फिलहाल 45 लाख टन से ज्यादा सरसों का स्टॉक मिलों, किसानों, व्यापारियों और नैफेड के पास मौजूद है। वहीं अक्टूबर से नए सोयाबीन की आवक के साथ सरसों की डिमांड कुछ कम हो जाती है। ऐसे मेंं व्यापारी करीब 4 लाख टन सरसों की क्लोजिंग स्टॉक की उम्मीद जता रहे हैं।
पृथ्वी फिनमार्ट के कमोडिटीज रिसर्च हेड मनोज जैन भी सरसों की कीमतों को फंडामेंटल से अलग देख रहे हैं उनके मुताबिक लॉकडाउन के दौरान दरअसल एक्सचेंज के गोदामों में ज्यादा माल लग नहीं पाया है और इसी वजह से नियरमंथ वायदा में जोरदार शॉर्ट कवरिंग हुई है। आपको बता दें 5 अगस्त तक NCDEX के गोदामों में महज 6,635 टन सरसों का स्टॉक है। जबकि अगस्त वायदा में 14,170 समेत कुल 37,190 का ओपन इंटरेस्ट है। साथ ही अगस्त के आगे के सारे वायदा डिस्काउंट में चल रहे हैं।
जानकार मान रहे हैं कि सरसों को कुछ हद तक ग्लोबल मार्केट में सोया तेल और पाम तेल की हाल की तेजी से भी सपोर्ट मिला है। हालांकि ब्राजील में इस साल सोयाबीन की रिकॉर्ड 13.26 करोड़ टन पैदावार का अनुमान है और अमेरिका के साथ घरेलू स्तर पर भी सोयाबीन का रकबा पिछले साल से करीब 8.4% आगे चल रहा है। कारोबारियों का कहना है कि मौजूदा डिमांड और सप्लाई को देखकर अक्टूबर तक सरसों का भाव करीब 4500 रुपए तक गिर सकता है।
|