पिछले पांच साल के सीजनल ट्रेंड यह दिखा रहे हैं कि अप्रैल से जुलाई के दौरान तुअर की कीमतें निगेटिव रही। यह इस कारण से हो सकता है कि इस दौरान आम और सब्जियों जैसे सस्ते विकल्प उपलब्ध रहते हैं। लेकिन सीजनल ट्रेंड यह भी बताते हैं कि अगस्त से सितंबर की अवधि के दौरान कीमतों में बढ़ोतरी हुई। जिसकी वजह नई फसल की धीमी आवक और त्योहारी सीजन की शुरुआत हो सकती है।
जैसा कि सीजनल चार्ट दिखा रहे हैं इस वर्ष कीमतों में तेजी पिछले 5 और 10 साल की औसत तेजी से ज्यादा रही है। जिसकी वजह सीमित स्टॉक और बाजार में कारोबारियों की कम रूचि भी हो सकती है। साथ ही लिक्विडिटी की कमी की वजह से भी बाजार में ज्यादा वोलैटिलिटी देखी गई।
सीमित आपूर्ति और नई फसल में देरी के कारण अगस्त और सितंबर के महीने में भी सीजनल ट्रेंड की तर्ज पर हीं तुअर की कीमतों में तेजी रह सकती है। हालांकि नैफेड और विदेशों से /आयात आपूर्ति होगी। लेकिन मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार नैफेंड एमएसपी के नीचे नहीं बेच सकता है। साथ ही विदेशी बाजारों में सीमित आपूर्ति और भारत से खरीद के कारण कीमतों को सपोर्ट मिल सकता है। जिसकी वजह से भारतीय बाजार में आयातित तुअर की कीमतों में बढोतरी हांगी। और घरेलू कीमतों को समर्थन मिलेगा।
फिलहाल घरेलू बाजार में स्टॉक दिन पर दिन गिरता जा रहा है और अभी तक आयात कोटे के आवंटन की प्रक्रिया शुरू नहीं हुई है। इसलिए आयातित तुअर को घरेलू बाजार में आने में दो महीने और लगेंगे और इससे बाजार को मौजूदा स्तरों से रिकवर करने में मदद मिलेगी।