मुंबई (कमोडिटीज कंट्रोल) कॉटन कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (CCI) सरकरी कंपनी है और महज इस लिए इसे सस्ते भाव पर कॉटन बेचनी चाहिए, ऐसी उम्मीद भारतीय कपड़ा उद्योग को नहीं करनी चाहिए। ये कहना है CCI की चेयरपर्सन पी अली रानी का, उनके मुताबिक कंपनी ने इस सीजन मार्केट में आवक का करीब एक चौथाई हिस्सा कपास खरीद लिया है।
गौरतलब है कि दक्षिण भारतीय मिल्स एसोसिएशन (SIMA) ने कपड़ा मंत्री स्मृति ईरानी से CCI को बाजार मूल्य पर कपास बेचने का निर्देश देने का आग्रह किया था ताकि कताई मिलें इसे सस्ते दर पर खरीद सकें। मिल मालिकों की शिकायत है कि CCI का 46,000 रुपए प्रति कैंडी (प्रत्येक 356 किलो प्रत्येक) का भाव बहुत अधिक है।
हालांकि CCI की चेयरपर्सन रानी का कहना है कि इस समय बेस्त क्वालिटी की कॉटन सिर्फ कॉटन कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया के पास है और बाजार में जो 40,000 रुपए/कंडी भाव बताया जा रहा है वह दोयम दर्जे का माल है। लिहाजा बाजार के माल की तुलना CCI से नहीं की जा सकती।
रानी ने कहा कि उद्योग के लिए यह उम्मीद करना अनुचित है कि दूसरी श्रेणी के कपास की कीमत पर बेस्ट क्वालिटी का माल उन्हें उपलब्ध हो और करदाताओं पर बोझ बने।
इस बीच SIMA के अध्यक्ष अश्विन चंद्रन ने आरोप लगाया है कि CCI की ट्रेडिंग पॉलिसी अक्सर खराब बाजार की स्थिति को बढ़ाती है, लिहाजा मौजूदा तय भाव पर इंडस्ट्री ने CCI की निविदा प्रक्रिया में भाग नहीं लेने का फैसला किया है।
उनके अनुसार, लघु और सहकारी मिलें ही CCI से खरीद रही हैं, लेकिन बड़ी मिलें CCI के निविदाओं में भाग नहीं ले रही हैं। ऐसे में CCI पिछले साल खरीदी कुल 11 लाख गांठ में से महज 200,000 गांठ ही बेच सकी है।
इस साल सीजन से शुरुआत से ही जब कीमतें MSP से नीचे चल रही थीं तब कंपनी ने 170 किलो के 38 लाख गांठ की खरीद कर चुकी है। मिलों का दावा है कि अगर आगे चलकर कॉटन का एक्सपोर्ट बढ़ता है तो घरेलू बाजार में हालात बेकाबू हो सकता है।
फिलहाल करीब 20 लाख गांठ का एक्सपोर्ट हो चुका है और इस साल के दौैरान करीब 60 लाख गांठ कॉटन एक्सपोर्ट की उम्मीद है। हालांकि कॉटन एडवायजरी बोर्ड ने इस साल 50 लाख गांठ एक्सपोर्ट की उम्मीद जताई है।