मुंबई (कमोडिटीज कंट्रोल) देश में खाने के तेलों का भंडार तीन साल के निचले स्तर पर गिरने की आशंकाओं के बीच पाम तेल की कीमतों में किसी तरह की तेजी की उम्मीद नहीं है। दरसअल ऊंची कीमतों पर देश में पाम तेल की मांग में कमी आई है। ये दावा है सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन के प्रेसिडेंट अतुल चतुर्वेदी का। commoditiescontrol.com से खास बातचीत में उन्होने बताया कि आगे पाम तेल का उत्पादन बढ़ने का अनुमान और सरसों की जोरदार फसल की वजह से घरेलू बाजार में इस साल की पहली छमाही तक कीमतों में किसी तरह की तेजी की उम्मीद नहीं है।
अतुल चतुर्वेदी ने कहा कि बेशक देश में पाम तेल का भंडार कुछ कम हो सकता है, लेकिन मांग के मुकाबले इसकी उपलब्धता कम नहीं है। इसकी वजह बताते हुए उन्होने कहा कि उंची कीमतों पर भारत में पाम तेल की मांग में कमी आई है। पाम महंगा होने से खरीदार सोया और सूरजमुखी के तेलों की खरीद बढ़ा दिए हैं। वहीं मार्च के बाद से दुनिया में पाम तेल का उत्पादन बढ़ने का अनुमान है। साथ ही भारत में भी मार्केट पर नई सरसों की आवक का दबाव रहेगा। ऐसे में 2020 के मध्य तक खाने के तेल और तिलहन की कीमतों में किसी तरह के तेजी की उम्मीद नहीं है।
दरअसल पिछले हफ्ते सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ने खाने के तेल इंपोर्ट के आंकड़े जारी किया था। जिसके मुताबिक इस सीजन में नवंबर-जनवरी के दौरान पाम तेल का इंपोर्ट करीब 13.5% गिरकर 2,004,567 टन रहा। SEA के मुताबकि पाम और सोया या सूरजमुखी तेल के बीच कीमतों का अंतर कम होने से खरीदार ऊंची कीमतों पर पाम तेल खरीदने से बच रहे हैं।
साल 2019-20 में देश में तिलहन का उत्पादन करीब 26.7 लाख टन बढ़कर करीब 3.42 करोड़ टन रहने का अनुमान है। साल 2018-19 के दौरान देश में करीब 3.15 करोड़ टन तिलहन का उत्पादन हुआ था।
गौरतलब है कि पिछले महीने सरकार ने रिफाइंड पाम तेल इंपोर्ट पर प्रतिबंध लगा दिया था। अतुल चतुर्वेदी का कहना है कि आमतौर पर देश में हर महीने करीब 1.25 लाख टन पामोलीन का इंपोर्ट होता रहा है। जो अब गिरकर 50-75 हजार टन पर आ सकता है। लेकिन दिक्कत ये है कि नेपाल के रास्ते हर महीने जीरो ड्यूटी पर 30-40 हजार टन रिफाइंड का इंपोर्ट जारी है। ऐसे में सरकार के इस कदम से एक ओर जहां इंडस्ट्री को कोई खास राहत की उम्मीद नहीं है। वहीं कीमतों पर दबाव बना रहेगा।